बात बात में तुम्हारा किसी कविता सा हो जाना
बात बात में तुम्हारा किसी कविता सा हो जाना
कभी कभी पायलों की झनकार सा तुम्हारा खिलखिलाना
किसी शायरी और गजल सा तुम्हारे लबों से निकलते बोलो का हो जाना
कभी तुम्हारा यूं मायूस होकर चांद की तरह बादलों में छुप जाना
तुम्हारी झुमकों की आवाज़ से सितार सी धुन निकलना
तुम्हारे खुले लहराते बालों को जुड़े में यूं पिरोना जैसे आंधियों का सिमट जाना
कभी क्रोध में अग्नि बन खोलते जल की तरह हो जाना
कभी कभी मीठे शीतल जल की ठंडक बन जाना
कभी चिड़ियों की चहचाहट में तुम्हारा यूं गूंजना
कभी शीत लहर सा बर्फ बनकर जम जाना और कभी
गर्माहट से पिघल जाना
आंखो में बसे सपनों का कनवैस पर उतर कर बादलों में बिखर जाना
तुम्हारा यूं हरे भरे पेड़ों की हरियाली सा चारों तरफ छा जाना
कभी ओस, कभी कोहरा और कभी बारिश बनकर तुम्हारा बरस जाना
कभी गर्मी के जलते दिन सा तुम्हारा हो जाना और
कभी सर्दी की कोई ठीठुरती रात हो जाना
तुम्हारा यूं बात बात में किसी कविता सा हो जाना जैसे जिंदगी में बार बार खुशियां आना
ख्यालों की तरह तुम्हारा आना जाना जैसे कोई कविता ख्याल बनकर आती है।
- कंचन सिंगला ©®
लेखनी प्रतियोगिता -06-Aug-2022
Punam verma
07-Aug-2022 09:42 PM
Very nice
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Gunjan Kamal
07-Aug-2022 10:34 AM
शानदार
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Abhinav ji
07-Aug-2022 09:30 AM
Very nice👍
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